गोपी तजि लाज -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री



गोपी तजि लाज, संग स्याम-रंग भूलीं।
पूरन मुख-चंद देखि, नैन-कोइ फूलीं।
कैधौं नव जलद स्वाति, चातक मन लाए।
किधौं बारि-बूँद सीप हृदय हरष पाए।
रवि-छबि कैधौं निहारि, पंकज बिकसाने।
किधौं चक्रवाकि निरखि, पतिहीं रति माने।
कैधौं मृग-जूथ जुरे, मुरली-धुनि रीझे।
सूर स्याम-मुख-मंडल-छवि के रस भीजे।।642।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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