हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 80 श्लोक 6-10

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 80 श्लोक 6-10

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शिरो निर्वेष्टुदकामा तु गोमयेन शिर: सती।
प्रक्षालयेन्मलं धात्र्या बिल्वेन श्रीफलेन च।।6।।

गोमूत्रं च सदा प्राश्येतच्छिर: स्नानं च मिश्रयेत्।
कृष्णांं चतुर्दशीं त्वेयतत् कर्तव्यं वरवर्णिनि।।7।।

भवत्यविधवा चैव सुभगा विज्वरा तथा।
शिरोरोगैर्नैव चास्याै: शरीरमभितप्यते।।8।।

दर्शनीयं ललाटं य कांक्षति स्त्री शुचिस्मिते।
तिथिं प्रतिपदं नित्यं सा क्षिपेदेकभोजना।।9।।
पयसा च तथा श्र्नीयाद् यावत्संवत्सरो गत:।

ब्राह्मणाय ततो दद्यात् पटं रूप्यमयं शुभम्।।10।।
ललाटं रूपसम्पन्नमाप्नोति स्त्री सुमध्यमा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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