हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 121 श्लोक 111-115

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 121 श्लोक 111-115

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गुरुत्वानन्मेरुतुल्‍यस्वंर लघुत्वावत्‍पवनोपम:।
भूते भव्ये् भविष्ये् च न ते तुल्योवऽस्ति विक्रमे।।111।।
 
सत्यंसंध महाभाग वैनतये महाद्युते।
अनिरुद्धेक्षणेनाद्य साहाय्यमुपकल्य् ताम्।।112।।

गरुड उवाच
अत्य द्भुतमिदं वाक्यं तव कृष्णो महाभुज।
त्वयत्प्रमसादाच्चद विजय: सर्वत्रैव महाभुज।।113।।

धन्योऽस्म्यनुगृहितोऽस्मि संस्तवान्ममधुसूदन।
स्तोतव्यस्वं मया कृष्ण‍ स्तौषि मां त्वं महाभुज।।114।।

वैदाध्याक्ष: सुराध्यक्ष: सर्वकामप्रदो भवान्।
अमोघदर्शनस्वंतव हि वरार्थिषु वरप्रद:।।115।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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