हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 11 श्लोक 31-35

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 11 श्लोक 31-35

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हंसकारण्‍डवोद्घुष्‍टां सारसैश्‍च निनादिताम्।
अन्‍योन्‍यमिथुनैश्‍चैव सेवितां मिथुनेचरै:।।31।।

जलजै: प्राणिभि: कीर्णां जलजैर्भूषितां गुणै:।
जलजै: कुसुमैश्चित्रां जलजैर्हरितोदकाम्।।32।।

प्रसृतस्‍त्रोतचरणां पुलिनश्रोणिमण्‍डलाम्।
आवर्तनाभिगम्‍भीरां पद्मरोमानुरंञ्जिताम्।।33।।

तटच्‍छेदोदरां कान्‍तां त्रितरंगवलीधराम्।
फेनप्रहृष्‍टवदनां प्रसन्‍नां हंसहासिनीम्।।34।।

रुचिरोत्‍पलरक्तोष्‍ठीं नतभ्रूं जलजेक्षणाम्।
ह्रददीर्घललाटान्‍तां कान्‍तां शैवलमूर्द्धजाम्।।35।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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