हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 119 श्लोक 46-50

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 119 श्लोक 46-50

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त्वाद्भावगतचित्ता सा त्वान्म‍यं चापि जीवितम्।।46।।

मनोरथकृतो भर्ता देव्या दत्तो न संशय:।
त्वरत्संगमात्‍सा सुश्रोणी प्राणान् धारयते शुभा।।47।।

चित्रलेखावच: श्रुत्वात सोऽनिरुद्धोऽब्रवीदिदम्।
दृष्टाे स्वप्ने मया सा हि तन्मत्त: श्रृणु शोभन।।48।।

रूपं कान्तिं मतिं चैव संयोगं रुदितं तथा।
एवं सर्वमहोरात्रं मुह्यामि परिचिन्तयन्।।49।।

यद्यहं समनुग्राह्यो यदि सख्यं त्वमिच्छऽसि।
नयस्वं चित्रलेखे मां द्रष्टुवमिच्छा‍म्यहं प्रियाम्।।50।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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