हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 109 श्लोक 91-95

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 109 श्लोक 91-95

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भरद्वाज: स्थू‍लशिरा: कश्यप: पुलह: क्रतु:।
बृहदग्निर्हरिश्मनश्रुर्विजय: कण्व एव च।।91।।
वैतण्डी दीर्घतापश्च वेदगाथोंऽशुमांञ्छिव:।

अष्टावक्रो दधीचिश्च‍ श्वेतकेतुस्तथैव च।।92।।
उद्दालक: क्षीरपाणि: श्रृंगी गौरमुखस्तथा।

अग्निवेश्य: शमीकश्च प्रमुचुर्मुमुचुस्तथा।।93।।
एते चान्ये च ऋषयो बहव: शंसितव्रता:।

मुनय: शंसितात्मानो ये चान्ये नानुकीर्तिता:।।94।।
क्रतव: श्लाघिन: शान्ता: शान्तिं कुर्वन्तु मे सदा।

त्रयोऽग्नयस्त्रयो वेदास्त्रैविद्या: कौस्तुंभो मणि:।।95।।
उच्चै:श्रवा हय: श्रीमान वैद्यो धन्वन्तरिर्हरि:।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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