हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 80 श्लोक 43-52

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अशीतितम अध्याय: श्लोक 43-52 का हिन्दी अनुवाद

सोमनन्दिनि! वरारोह! जो स्‍त्री यह चाहती हो कि मेरे पैरों के गुल्‍फ (घुट्ठियां या गट्टे) और नस-नाड़ियां ढकी रहें, वह प्रत्‍येक षष्‍ठी तिथि को केवल पानी के साथ भात खाय। तपस्विनि! यह व्रत लेने वाली स्‍त्री को सदा ही उचित है कि वह अग्नि अथवा ब्राह्मण का पैर से स्‍पर्श न करे। यदि कभी स्‍पर्श हो जाय तो उनको प्रणाम करे। उसे पैर से पैर को नहीं धोना (रगड़ना) चाहिये। इन नित्‍य व्रतों से युक्‍त हुई धर्मज्ञ पतिव्रता नारी सोने या चाँदी के दो कछुए बनवाये। निष्‍पाप पतिव्रते! फिर उन दोनों कछुओं को घी में रखकर श्रेष्‍ठ ब्राह्मण को दान कर दे। नन्दिनि! इसके सिवा दो कमलों को उनके मुख नीचे की ओर करके रखे, उन्‍हें लाल रंग के गन्‍धादि द्रव्‍यों से संयुक्‍त करके सुवर्ण से अलंकृत करे; तत्‍पश्‍चात उनका ब्राह्मण को दान कर दे।

जो पतिदेवता नारी अपने सम्‍पूर्ण शरीर को ही अत्‍यन्‍त मनोहर बनाना चाहती है, वह रजोदर्शन के अवसर पर तीन रात उपवास करे। वह कार्तिक, आषाढ़, माघ तथा आश्विन की पूर्णिमा को माता, पिता, अतिथि और देवता का आदर-सत्‍कार एवं पूजन करे। वह पतिव्रता ब्राह्मणों को प्रतिदिन नमक और घी दान करे। नित्‍य घर में झाडू लगाये। धर्मज्ञे! मानिनि! शुभ्रे! अपने स्‍वार्थ को समझने में कुशल नारी घर में लीपने-पोतने तथा देवताओं को (उपहार-सामग्री) अर्पण करने का कर्म भी करे। वह कभी दुर्वचन का प्रयोग न करे। यशस्विनि! वह किसी एक शाक का ही भक्षण करे। भामिनि! वह देवताओं के लिए उपहार दे और असत्‍य भाषण का त्‍याग करे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्‍तर्गत विष्‍णु पर्व में पारिजातहरण के प्रसंग में व्रतों का विधानविषयक अस्‍सीवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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