हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अशीतितम अध्याय: श्लोक 21-42 का हिन्दी अनुवादजो धर्मरूपी गुण से युक्त सती-साध्वी स्त्री यह चाहती हो कि मेरे ओठ बड़े सुन्दर हों, वह एक वर्ष तक मिट्टी के बर्तन से पानी पीये और धर्म की भागिनी होकर प्रत्येक नवमी तिथि को बिना माँगे मिले हुए अन्न का भोजन करे। इस प्रकार एक वर्ष पूर्ण हो जाने पर उसे मूँगा दान करना चाहिये। शोभने! ऐसा करने से उस स्त्री के ओठ अवश्य ही बिम्बफल के समान लाल हो जाते हैं तथा वह सौभाग्यवती, रूपवती, पुत्रवती धनाढ्य और गौओं से युक्त होती है। अमरवर्णिनि! जो चाहती हो कि मेरे दांत बहुत ही सुन्दर और स्वच्छ हो, वह साध्वी स्त्री शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को दोनों समय भोजन त्याग दे। धर्मज्ञे! इस तरह एक वर्ष पूर्ण होने पर वह सती नारी चांदी के दांत बनवाकर उन्हें अत्यन्त उत्तम गुण वाले दूध में डाल दे और दांतों सहित उस दुग्ध का ब्राह्मण को दान कर दे। अनघे! ऐसा करने से वह सती-साध्वी स्त्री चमेली के फूल- जैसे श्वेत दांत पाती है और सौभाग्य तथा पुत्र लाभ करती है। रुचिरानने! जो स्त्री सम्पूर्ण मुख-मण्डल को ही कमनीय कान्ति से युक्त देखना चाहे, वह भामिनी पूर्णिमा को स्नान करके शुभ चन्द्रोदय होने पर दूध में तैयार किये गये यावक का ब्राह्मण को दान दे। इस तरह एक वर्ष पूर्ण होने पर सोने या चांदी की चन्द्रमा की सुन्दर प्रतिमा बनवाकर उसे कमल के फूल पर रखे और ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराये और उसका दान कर दे। वह शुभलक्षणा स्त्री उस दान के द्वारा पूर्ण चन्द्रमा के समान मनोहर मुख वाली हो जाती है। जो नारी यह चाहती है कि मेरे दोनों स्तन ताड़ के फलों के समान पीन हों, वह प्रत्येक दशमी तिथि को सदा मौन रहकर बिना मांगे मिले हुए अन्न का भोजन करे। इस प्रकार एक वर्ष पूर्ण होने पर जो सोने के बने हुए दो सुन्दर बेल जितात्मा ब्राह्मण को दक्षिणा सहित दान में देती है, वह परम सौभाग्य एवं बहुत-से पुत्र प्राप्त करती है। देवोपम कान्ति वाली देवि! वह स्त्री सदा ऊँचे स्तन धारण करती है। जो कृशोदरी होना चाहती है (अर्थात जिसकी यह इच्छा है कि मेरा पेट उभड़न या बढ़ने न पाये, भीतर को दबा रहे), वह एकान्त में भोजन करे और पंचमी को सदा केवल जल से अन्न ग्रहण करे। शुभे! धन्ये! इस तरह एक वर्ष पूर्ण होने पर जितात्मा ब्राह्मण को खिली हुई चमेली की लता का दक्षिणा सहित दान करे। सुमध्यमे! जो नारी अपने दोनों हाथों को सुन्दर रूप से युक्त देखना चाहती है, वह द्वादशी तिथि को सब प्रकार के अनिन्दित (उत्तम) शाकों द्वारा आहार करके व्यतीत करे। इस तरह एक वर्ष व्यतीत होने पर वह सुवर्णमय कमल पर दो खिले हुए कमल के फूल रखकर उन सबका सुन्दर एवं सुयोग्य ब्राह्मण को दान करे। उत्तम व्रत का पालन करने वाली देवि! जो नारी विशाल नितम्ब चाहती हो, वह त्रयोदशी तिथि को केवल एक बार अयाचित अन्न भोजन करे और इसी तरह प्रत्येक त्रयोदशी को व्यतीत करे। वरानने! इस तरह एक वर्ष पूर्ण होने पर प्रजापति ब्रह्मा जी के मुख-सी आकृति वाली नमक की राशि का दान करे। इसी प्रकार प्रजापति के मुख के आकार का ही सुवर्ण भी सदा दान करना चाहिये। धर्मज्ञ नारी धीरे-धीरे अंजन से किसी ब्रह्माणी के नेत्रों में काजल लगाये। सौम्ये! पूर्ण रत्न और लाल रंग का वस्त्र भी दे। इससे वह स्त्री अपने मन के अनुकूल नितम्ब पाती है। मधुर वाणी की इच्छा रखने वाली सती नारी एक वर्ष या एक मास तक नमक खाना छोड़ दे और वाणी के अतिशय माधुर्य की इच्छा रखकर ब्राह्मण को दक्षिणा सहित नमक दान करे। अमरवर्णिनि! ऐसा करने से उसकी वाणी की मिठास तोते की वाणी से सौ गुनी अधिक हो जाती है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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