हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 6 श्लोक 18-34

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: षष्ठम अध्याय: श्लोक 18-34 का हिन्दी अनुवाद

वे दोनों इस प्रकार जब वार्तालाप कर रहे थे, उस समय वहाँ आये हुए व्रज के बालकों ने कहा- 'बाबा! तुम्हारे इस लाल ने ही अपने पैर से मारकर यह गाड़ी लुढ़का दी है। हम लोग अकस्मात् यहाँ दौड़े हुए आये थे। हमने अपनी आंखो यह घटना देखी है।' बालकों की यह बात सुनकर नन्द गोप को बड़ा विस्मय हुआ। वे पहले तो प्रसन्न हुए परन्तु ऐसा सोचते हुए कि यह क्या है, वे फिर डर गये। वहाँ जो बड़े-बड़े गोप थे, उन सबकों इस बात पर विश्वा‍स न हुआ; क्योंकि वह उस बच्‍चे को साधारण मनुष्य का ही बालक समझते थे। फिर भी वे सब-के-सब इस घटना से आश्चर्य करने लगे थे। उनके नेत्र विस्मय से खिल उठे थे। वे छकड़े को अपनी जगह पर खड़ा करके उसमें पहिये जोड़ने लगे।

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! कुछ काल के बाद व्रज में आधी रात के समय क्राेधपूर्वक अपने दोनों पंख हिलाती हुई पक्षिणी का रूप धारण किये एक राक्षसी आयी। वह भोजराज कंस की धाय थी, उसका नाम पूतना था। पूतना नाम वाली वह घोर पक्षिणी समस्त प्राणियों के लिये भयंकर थी। आधी रात के समय जब पूतना दिखायी दी, उस समय वह व्याघ्र के दहाड़ने के से गम्भीर घोष में बारम्बार गर्जना कर रही थी। वह मानवी स्त्री का वेष धारण करके छकड़े के धूरे के नीचे छिप गयी। उस समय उसके स्तनों मे में इतना दूध बढ़ आया था कि उनमें पीड़ा होने लगी थी, इसीलिये वह दूध की वर्षा-सी करने लगी। उस निशीथ-काल में जब सब लोग सो गये थे, उसने कृष्ण के मुख में अपना स्तन दे दिया। लाला कन्हैया उस स्तन को उसके प्राणों के साथ ही पी गया, उसका स्‍तन कट गया और वह पक्षिणी घोर चीत्कार करके सहसा पृथ्‍वी पर गिर पड़ी। उसके उस शब्द से संत्रस्त होकर नन्द गोप, दूसरे-दूसरे गोप तथा अत्यन्त़ व्याकुल हुई यशोदा- ये सब-के-सब भय के मारे जाग उठे। उन्होंने देखा, पूतना पृथ्वी पर अचेत होकर पड़ी है। उसका स्तन कट गया है और वह ऐसी प्रतीत होती है, मानो वज्र से विदीर्ण कर दी गयी हो।

यह क्या है? किसका यह कर्म है? ऐसी बातें करते हुए वे गोप भयभीत हो गये और नन्द जी को आगे करके पूतना को घेरकर खड़े हो गये। वे उस समय उस घटना के कारण का पता कदापि न लगा सके और ‘आश्चर्य है! आश्चर्य है!’ ऐसा कहते हुए अपने-अपने घरों को चले गये। उन विस्मित हुए गोपों के अपने-अपने घर चले जाने पर सम्भ्रम रहित हुए नन्द गोप ने यशोदा से पूछा- 'विधाता का यह कैसा विधान है, यह मेरी समझ में नहीं आता। इस घटना से मुझे महान विस्‍मय हो रहा है। यहाँ मेरे पुत्र के लिये तीव्र भय उपस्थित हुआ है, जिससे हम लोगों मे भीरूता आ गयी है’। यह सुनकर यशोदा ने भयभीत होकर कहा- ‘आर्य! मैं भी नहीं जानती कि यह क्यों है? मैं तो इस बच्चे के साथ सोयी थी। इस राक्षसी के चीत्कार से ही जग गयी हूँ’। जब यशोदा ने भी अपनी अनभिज्ञता प्रकट की, तब बन्धु-बान्धवों सहित नन्दगोप कंस से अत्यन्त भय मानने लगे और मन-ही-मन विस्मय को प्राप्त हुए।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में श्रीकृष्ण की बाललीला के प्रसंग में शकट-भंग और पूतना का वधविषयक छठा अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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