हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकोनसप्तपतितम अध्याय: श्लोक 45-60 का हिन्दी अनुवाद
यदि हम लोग ही प्राचीन मर्यादारुपी सेतु का बन्धन तोड़ दें तब तो दैत्य तथा दैत्य पक्ष के दूसरे लोग नि:शंक होकर उन मर्यादाओं का भेदन करने लगेंगे। मानद! यदि केवल एक स्त्री को संतुष्ट करने के लिये स्वर्ग से वृक्षराज पारिजात को भूतल पर पहुँचा दिया जाय तो स्वर्गलोक के निवासियों का मन उदास हो जायगा। स्व्यम्भू ब्रह्मा ने मनुष्यों के लिये जो उपभोग की वस्तुएं बनायी हैं, समय के परिवर्तन को देखते हुए मेरे भाई को उन्हीं से संतोष करना चाहिये। तात! इस स्वर्गलोक में मेरे पास जो भोग-सामग्रियों का संग्रह हैं, वह सब श्रीकृष्ण यहाँ रहकर भी तो भोग सकते हैं। मर्त्य लोक की भोग्य वस्तुओं से हष्ट-पुष्ट होने के कारण जनार्दन श्रीकृष्ण को कुछ अभिमान हो गया है। उस अभिमान के कारण ही वे धर्म का परित्याग करके पाप का ही अनुसरण कर रहे हैं। महात्मा श्रीकृष्ण स्त्री के वशीभूत रहते हैं, इस बात की प्रसिद्धि तो उनके लिये संसार में अयश या कलंक की ही प्राप्ति करायेगी; ऐसा मेरा विश्वास हैं। नारद! मनुष्य लोक में मानव-शरीर को प्राप्त हुए मधुसूदन यदि मुझ बड़े भाई के साथ दुराग्रहपूर्ण बर्ताव करें तो यह उनके लिये उचित नहीं है। निष्पाप देवर्षे! स्वर्गीय रत्न के विलोप होने-उसके लूट जाने से मेरा तिरस्कार होगा और अपने भाई-बन्धु से तिरस्कार पाना तो बहुत ही निन्दित है। ये मधुसुदन क्रमश: धर्म, अर्थ और काम का सेवन करें। ब्रह्मा जी के द्वारा स्थापित किये हुए सत्पुरुषों के धर्मों का आश्रय लें। यदि मैं पारिजात को भूतल पर भेज दूंगा तो शची से लेकर कौन ऐसा स्वर्गवासी होगा, जो मुझे अधिक आदर की दृष्टि से देखेगा। भूतल पर पारिजात का दर्शन और स्पर्श करके मनुष्य पृथ्वी पर ही स्वर्ग पर उपलब्ध हुआ देख स्वर्ग की प्राप्ति के लिये उद्यम ही नहीं करेंगे। नारद! यदि मनुष्य पारिजात के गुणों और उससे मिलने वाली लाभों का सेवन करने लगेंगे तो देवताओं और मनुष्यों में कोई अन्तर ही नहीं रह जायेगा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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