हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 59 श्लोक 39-53

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकोनषष्टितम अध्याय: श्लोक 39-53 का हिन्दी अनुवाद

वह पतले और लंबे कद की स्त्री थी। उसके सारे अंग बड़े ही मनोहर थे। उसका मुख चन्द्रमा के समान गौर कान्ति से सुशोभित था। नख लाल और ऊँचे थे। भौंहें सुन्दर तथा सिर के बाल काले और घुँघराले थे। वह रूप की दृष्टि से अत्यन्त कमनीया थी। उसके नितम्ब और उरोज पीन (उभरे हुए) थे। वह तीक्ष्ण, श्वेत बराबर जमे हुए और चमकीले दाँतों से सुशोभित होती थी। रूप, यश और शोभा की दृष्टि से संसार में दूसरी कोई युवती उसके समान नहीं थी। उज्ज्वल रेशमी साड़ी पहने हुए राजकुमारी रुक्मिणी रूपवती देवी-सी जान पड़ती थी। जैसे घी की आहुति डालने से अग्नि की ज्वाला प्रज्वलित हो उठती है, उसी प्रकार उस प्रियदर्शना राजकन्या को देखकर श्रीकृष्ण की उसे पाने के लिये कामना बहुत बढ़ गयी। उन्होंने अपना हृदय उसी पर निछावर कर दिया।

तदन्तर महाबली श्रीकृष्ण ने वृष्णिवंशियों के साथ सलाह और बलराम जी के साथ कर्तव्य का निश्चय करके रुक्मिणी को हर लेने का विचार किया। इतने में ही देवपूजा का कार्य सम्पन्न करके रुक्मिणी देवालय से निकलने लगी। उसी समय श्रीकृष्ण ने सहसा पहुँचकर उसे गोद में उठा लिया और अपने उत्तम रथ पर पहुँचा दिया। इधर बलराम ने भी एक पेड़ उखाड़कर आक्रमण करने वाले शत्रुओं को उसी से संहार कर डाला। उस समय बलराम जी की आज्ञा पाकर समस्त यदुवंशी वीर युद्ध के लिये कमर कसकर तैयार हो गये। वे ऊँचे एवं विशाल ध्वजों से युक्त भाँति-भाँति के रथों, घोड़ों और हाथियों द्वारा बलराम जी को चारों ओर से घेरकर खड़े हो गये।

बलवान श्रीकृष्ण युद्ध का सारा भार बलराम तथा सात्यकि पर छोड़कर रुक्मिणी को साथ ले शीघ्र ही द्वारकापुरी को चल दिये। मधुसूदन श्रीकृष्ण ने युद्ध का वह गुरुतर भार (बलराम और सात्यकि के सिवा) अक्रूर, विपृथु, गद, कृतवर्मा, चक्रदेव, सुदेव, महाबली सारण, निवृत्तशत्रु, पराक्रमी भंगकार, विदूरथ, उग्रसेनकुमार कंक, शतद्युम्न, राजाधिदेव, मृदुर, प्रसेन, चित्रक, अतिदान्त, बृहद्दुर्ग, श्वफल्क, सत्यक, पृथु तथा अन्यान्य वृष्णि और अन्धकवंश के प्रमुख वीरों पर रखकर द्वारकापुरी की ओर प्रस्थान किया। उधर दन्तवक्त्र, जरासंध और पराक्रमी शिशुपाल कवच बाँधकर श्रीकृष्ण को मार डालने की इच्छा से क्रोध में भरे हुए निकले। पराक्रमी चेदिराज शिशुपाल अंग, बंग, कलिंग तथा पुण्ड्रदेशीय योद्धाओं और अपने महारथी भाइयों के साथ युद्ध के लिये निकला।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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