हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 48 श्लोक 12-24

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अष्टचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 12-24 का हिन्दी अनुवाद

यदि कदाचित इन्हें कन्या न भी दी जाय तो ये देवताओं के साथ उपस्थित हो बलपूर्वक इसे ले जाने में समर्थ हैं। सुना जाता है कि प्राचीन काल में यह पृथ्वी भयंकर एकार्णव में निमग्न हो रसातल में जा पहुँची थी। उस समय जगत के आदि कारण इन्हीं प्रभावशाली विष्णु ने वाराहरूप धारण करके इसका उद्धार किया था। उस समय दैत्यराज हिरण्याक्ष को भी वाराहरूप से ही मार गिराया था। महान बल और पराक्रम से सम्पन्न दैत्यराज हिरण्यकशिपु देवताओं और दैत्यों के लिये भी अवध्य था।

ऋषि, गन्धर्व और किन्नर भी उसे मार नहीं सकते थे। यक्ष, राक्षस और नागों के लिये भी वह अजेय था। वह न तो आकाश में मर सकता था, न पृथ्वी पर। न रात में न दिन में और न सूखे अस्त्र से न गीले अस्त्र से ही। तीनों लोकों में अवध्य वह दैत्यराज किसी से पराजित होने वाला नहीं था, तो भी पूर्वकाल में भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण करके उसे मार डाला। फिर किसी समय बलवान विष्णु महर्षि कश्यप के पुत्र रूप में देवी अदिति के गर्भ से प्रकट हुए। उस समय उन्होंने वामन रूप धारण करके असुरराज बलि को सत्य की रस्सी से बनाये गये पाशों द्वारा बाँध लिया और उसे पाताल लोक का निवासी बना दिया।

कृतवीर्य का पुत्र महापरक्रमी अर्जुन का शरीर दत्तात्रेय जी की कृपा से सहस्र भुजाओं से सुशोभित होता था। वह राज्यमद से उन्मत्त हो गया था। (उसके दमन के लिये भगवान विष्णु) त्रेता और द्वापर की सन्धि के समय रेणुका के गर्भ से प्रकट हुए। वे शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ महातेजस्वी जमदग्निकुमार परशुराम के नाम से प्रसिद्ध हुए। इस तरह पुनः छद्मरूपधारी भगवान विष्णु ने हैहयवंश में उत्पन्न राजा कार्तवीर्य को, जो सातों द्वीपों का स्वामी था, अपने वज्रतुल्य फरसे से मार डाला। तत्पश्चात वे इक्ष्वाकु-कुल में दशरथनन्दन श्रीराम के रूप में प्रकट हुए। उन्होंने पूर्वकाल में त्रिलोक विजयी वीर रावण को मार गिराया था। प्राचीन काल की बात है- सत्ययुग में तब तारकामय संग्राम हुआ था, उस समय पराक्रमी विष्णु आठ भुजाओं से युक्त हो गरुड़ पर बैठकर वहाँ पधारे। वहाँ उन्होंने वरदान से गर्वित हुए असुरों को युद्ध में मार डाला तथा देवताओं को भय देने वाले कालनेमि नामक दैत्य का भी वध कर दिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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