हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 47 श्लोक 35-46

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: सप्तचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 35-46 का हिन्दी अनुवाद

अपने ध्वज, सचिव तथा संकटकाल के साथी धैर्यवान गरुड़ को आया देख भगवान मधुसूदन को बड़ा हर्ष हुआ। वे दूसरे देवता की भाँति सामने खड़े थे। इस प्रकार सम्मुख उपस्थित हुए गरुड़ से अपने समान शक्तिशालिनी वाणी द्वारा मधुसूदन ने इस प्रकार कहा- श्रीकृष्ण बोले- 'आकाशचारियों में श्रेष्ठ गरुड़! तुम्हारा स्वागत है। देवसेना के शत्रुओं का मर्दन करने वाले केशवप्रिय विनतानन्दन! तुम्हारा स्वागत है। पंख ही जिनका रथ है, उन पक्षियों में सबसे श्रेष्ठ गरुड़! तुम राजा कैशिक[1] के भवन में चलो। हम आज वहीं चलकर स्वयंवर की प्रतीक्षा करें। वहाँ हाथी, घोड़े और रथों द्वारा यात्रा करने वाले सैकड़ों महामनस्वी नरेश एकत्र हुए हैं, जिनका हमें दर्शन प्राप्त होगा।' महाबली विनतानन्दन गरुड़ से ऐसा कहकर महाबाहु श्रीमान कृष्ण गरुड़ तथा महारथी यादवों के साथ महामना कैशिक की राजधानी कुण्डिनपुर में गये। देवकीनन्दन श्रीकृष्ण के विदर्भ नगर में पहुँच जाने पर उनके साथ के सब लोग बड़े प्रसन्न हुए। सबके मन में बड़ा हर्ष हुआ। वे समस्त बलशाली तथा अस्त्र-शस्त्रधारी राजपूत वहाँ ठहरने की तैयारी करने लगे।

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! इसी समय नीतिविशारद राजा कैशिक प्रसन्नचित्त से उठकर स्वयं ही श्रीकृष्ण के पास गये और उन्हें अर्घ्य, आचमन आदि देकर विधिपूर्वक सत्कार करके अपने नगर में ले आये। उन्होंने श्रीकृष्ण के लिये पहले से ही एक दिव्य भवन का निर्माण करा रखा था। जैसे भगवान शंकर कैलासधाम में जाते हैं, उसी प्रकार श्रीमान कृष्ण ने अपने सेना के साथ कैशिक के उस भवन में प्रवेश किया। इन्द्र के छोटे भाई श्रीकृष्ण उस राजमहल में खान-पान आदि से एवं रत्न-राशियों द्वारा भलीभाँति पूजित हो सुखपूर्वक रहने लगे। राजा कैशिक ने बड़े ही सम्मान के साथ स्नेहपूर्ण हृदय से उनका पूजन किया था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में रुक्मिणी स्वयंवर विषयक सैंतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ये राजा कैशिक विदर्भराज भीष्मक के पिता तथा रुक्मी के पितामह थे।

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