हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 42 श्लोक 69-77

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: द्विचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 69-77 का हिन्दी अनुवाद


बड़ी–बड़ी चंचल शिलाओं के ढेर से युक्त वह पर्वत आग से तप कर अपनी शिलाओं को इस प्रकार छोड़ रहा था, मानो इंद्र के वज्र से विदीर्ण होकर बिखरा जा रहा हो। उस पर्वत राज में आग लगाकर व्यूह के आकार में सुसज्जित होकर खड़े हुए क्षत्रिय उस प्रचण्ड पावक से संतप्त हो आधा कोस पीछे हट गए।

वह पर्वतों में श्रेष्ठ गोमन्त नष्ट होते हुए महान वृक्षों के साथ जब इस प्रकार दग्ध होने लगा, धूम भार से उसकी ओर देखना असंभव हो गया और उसका मूल भाग शिथिल होने लगा, तब बलराम जी ने केशी और मधु नामक दैत्यों का संहार करने वाले साक्षात विष्णु स्वरूप कमलनयन श्रीकृष्ण से रोषपूर्वक कहा- 'तात! श्रीकृष्ण! हम लोगों से वैर हो जाने को कारण इन बलवान भूपतियों द्वारा छोटे-बड़े शिखरों और वृक्षों सहित यह पर्वत जलाया जा रहा है। श्रीकृष्ण! देखो, चारों ओर आग से तपे और धुएं से भरे इन जंगलों के वृक्षों के निकट ये उत्तम हाथी करुण-क्रंदन सा कर रहे हैं।

तात! यदि हम दोनों के लिए गोमन्त जला दिया जाएगा तो यह संसार में हमारे लिए महान अपयश और कलंक की बात होगी।' अत: योद्धाओं में श्रेष्ठ तथा युद्ध में पर्वत के समान अविचल रहने वाले श्रीकृष्ण! इस गोमन्त–पर्वत से उऋण होने के लिए हम लोग अपनी भुजाओं से ही इन क्षत्रियों को मार डालेंगे। तात! ये सारे क्षत्रिय इस पर्वत को जलाकर कवच आदि से सुसज्जित हो रथ पर बैठकर यथास्थान युद्ध करने के लिए उत्सुक दिखाई देते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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