हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 38 श्लोक 46-58

Prev.png

हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अष्टात्रिंश अध्याय: श्लोक 46-58 का हिन्दी अनुवाद

रैवत (ऋक्ष) के महायशस्वी राजा विश्वगर्भ हुए, जो पृथ्वी पर प्रसिद्ध एवं प्रभावशाली भूमिपाल थे। केशव! उनके तीन भार्याऐं थीं। तीनों ही दिव्य रूप-सौन्दर्य से सुशोभित होती थीं। उनके गर्भ से राजा के चार सुन्दर पुत्र हुए, जो लोकपालों के समान पराक्रमी थे। उनके नाम इस प्रकार हैं- वसु, बभ्रु, सुषेण और बलवान सभाक्ष। ये यदुकुल के प्रख्यात श्रेष्ठ वीर दूसरे लोकपालों के समान शक्तिशाली थे।

श्रीकृष्ण! उन राजाओं ने इस यादव वंश को बढ़ाकर बड़ी भारी संख्या से सम्पन्न कर दिया। जिनके साथ इस संसार में बहुत-से संतानवान नरेश हैं। वसु से (जिनका दूसरा नाम शूर था) वसुदेव उत्पन्न हुए। ये वसुपुत्र वसुदेव बड़े प्रभावशाली हैं। वसुदेव की उत्पत्ति के अनन्तर वसु ने दो कान्तिमती कन्याओं को जन्म दिया (जो पृथा (कुन्ती) और श्रुतश्रवा नाम से विख्यात हुईं) इनमें से पृथा कुन्ति देश में (राजा कुन्तिभोज की दत्तक पुत्री के रुप में) रहती थी। कुन्ती जो पृथ्वी पर विचरने वाली देवांगना के समान थी, महाराज पाण्डु की महारानी हुईं तथा सुन्दर कान्ति से प्रकाशित होने वाली श्रुतश्रवा चेदिराज दमघोष की पत्नी हुईं।

श्रीकृष्ण! यह मैंने तुमसे अपने यादव वंश की उत्पत्ति बतायी है। इसे मैंने पहले श्रीकृष्णद्वैयापन व्यास जी से सुना था। वंशधारियों में श्रेष्ठ गोविन्द! इस समय यह वंश नष्ट-सा हो चला था। परंतु तुम स्वयम्भू ब्रह्मा जी के समान इस वंश के उद्भव तथा हमारी विजय के लिये इसमें अवतीर्ण हुए हो। हम लोग तुम्हें साधारण पुरवासी बताकर छिपाने में असमर्थ हैं; क्योंकि तुम देवताओं के गुप्त रहस्यों से भी परिचित, सर्वज्ञ तथा सबको उत्पन्न करने वाले हो। प्रभो! तुम राजा जरासंध से युद्ध करने में समर्थ हो। हम सब लोग योद्धाओं के व्रत में स्थिर रहकर सदा तुम्हारी बुद्धि के वशीभूत रहेंगे। परंतु राजा जरासंध बड़ा बलवान है। वह राजाओं के सिर पर खड़ा है। उसके पास असंख्‍य सेना है और इधर हम लोगों के पास युद्ध की साधन-सामग्री बहुत थोड़ी है।

यह मथुरापुरी शत्रुओं द्वारा ‍किये गये एक दिन के उपरोध (घेरे) को भी नहीं सह सकेगी; क्योंकि यहाँ खाने-पीने की सामग्री बहुत कम है। लकड़ियों का संचय भी स्वल्प ही है तथा यह पुरी विभिन्न प्रकार के दुर्गों से घिरी हुई नहीं है। इसके चारों ओर जो जल भरने के लिये खाइयां बनी हुई हैं, उनकी बहुत दिनों से मरम्मत और सफाई नहीं हुई है तथा नगर के द्वार पर रक्षा के लिये यन्त्र (तोप आदि) भी नहीं लगे हुए हैं। पुरी की रक्षा के लिये चारों ओर से मिट्टी की मोटी दीवारें तथा कई पक्के परकोटे बनवाने की आवश्यकता है, जिनका विस्तार बहुत बड़ा हो।

Next.png


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः