हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 121 श्लोक 63-82

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 63-82 का हिन्दी अनुवाद

इतने में ही वे सब गुप्तचर सब ओर से खोज करके सभा द्वार पर लौट आये और धीरे-धीरे गद्गद वाणी में इस प्रकार बोले- ‘राजन! सारे उद्यान, गुफाएँ, पर्वत, धर्मशाले, नदियाँ और सरोवर छान डाले गये। एक-एक स्थान पर सौ-सौ बार खोज की गयी, परंतु कहीं अनिरुद्ध का दर्शन नहीं हुआ। राजन! दूसरे चर भी भगवान श्रीकृष्ण के पास आकर कहने लगे- ‘प्रभो! हमें सब देशों का पता है, सर्वत्र खोज की गयी, किंतु कहीं भी प्रद्युम्नकुमार का पता नहीं लग रहा है। यदुनन्दन! अनिरुद्ध के अन्वेषण के लिये अब और जो कुछ कार्य करना हो, उसके लिये हमें शीघ्र आज्ञा दीजिये।' चरों की ये बातें सुनकर सबका मन उदास हो गया। सबके नेत्रों में आँसू भर आये और सब एक दूसरे से कहने लगे। ‘इससे उत्तम कार्य अब और क्या करना चाहिये?’ किसी ने क्रोधवश दाँतों ओठ दबा लिये, किन्हीं के नेत्रों में आँसू भर आये और कोई भौंहें टेढ़ी करके कार्य सिद्धि के उपाय पर विचार करने लगे। इस प्रकार चिन्तन करते हुए उन यादवों के मुख से अनेक तरह की बातें निकलीं। अनिरुद्ध कहाँ गये?

इस प्रश्न को लेकर सब के हृदय में महान सम्भ्रम हो गया। शत्रुदमन नरेश! उस समय कुपित और खिन्न हुए यादव एक दूसरे का मुँह देखने लगे। अनिरुद्ध के अपहरण की बारम्बार चर्चा करते हुए उन्होंने उदास मन से किसी तरह वह रात बितायी। इस तरह आपस में बात करते हुए ही उनकी रात बीत गयी और प्रात:काल आ गया। तदनन्तर महाबाहु श्रीकृष्ण के भवन में सबको जगाने के लिये बड़े जोर-जोर से भाँति-भाँति के बाजे बजने लगे और शंखों की भी गम्भीर ध्वनि होने लगी। तत्पश्चात निर्मल प्रभात में जब सूर्य देव का उदय हुआ, उस समय अकेले नारद जी ने हँसते हुए-से वहाँ यादवों की सभा में प्रवेश किया। श्रीकृष्ण के साथ एकत्र हुए समस्त यादवों की ओर देखकर उन्होंने ‘जय हो, जय हो’ कहकर माधव (श्रीकृष्ण) का समादर किया। फिर उग्रसेन आदि ने नारद जी का पूजन किया। इसके बाद रणदुर्जय भगवान श्रीकृष्ण ने उदास मन से उठकर नारद जी को मुधपर्क तथा एक गौ समर्पित की।

स्वागत-सत्कार के पश्चात जब नारद जी सब प्रकार के बिछौनों से ढके हुए शुभ्र आसन पर सुखपूर्वक बैठ गये, तब वे यथोचित रीति से यह अर्थयुक्त वचन बोले। नारद जी ने कहा- आज क्या बात है कि समस्त यादव इस तरह चिन्तामग्न, असंग, अनमने और उत्साहहीन होकर क्लीबों (कायरों) के समान चुपचाप बैठे हैं? महात्मा नारद के इस तरह पूछने पर भगवान श्रीकृष्ण बोले- ‘भगवन! इसका कारण सुनिये- उत्तम व्रत का पालन करने वाले ब्रह्मन! यहाँ रात्रि के समय किसी ने अनिरुद्ध का अपहरण कर लिया है। उन्हीं के लिये हम सब लोग यहाँ चिन्तित-चित्त होकर बैठे हैं। निष्पाप मुने! भगवन! यदि यह वृत्तान्त आपने कहीं सुना या देखा हो तो अच्छी तरह बताइये, यह मेरा प्रिय विषय है। महात्मा केशव के ऐसी बात कहने पर नारद जी ठठाकर हँस पड़े और इस प्रकार बोले- मधुसूदन! सुनिये- एक महासमर में एक ओर अकेले अनिरुद्ध थे और दूसरी ओर सेना सहित बाणासुर था। इन दोनों में महान देवासुर संग्राम के समान बड़ा भारी युद्ध हुआ। अप्रतिम बलशाली बाणासुर की एक पुत्री है, जिसका नाम उषा है। उसी के लिये चित्रलेखा अप्सरा शीघ्रतापूर्वक अनिरुद्ध को हर ले गयी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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