हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 121 श्लोक 136-145

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 136-145 का हिन्दी अनुवाद


उनके मुख में चार दाढ़ें सुशोभित थीं। वे चार भुजाएँ धारण किये हुए थे, छहों अंगों सहित चारों वेदों के ज्ञाता थे। उनके वक्ष:स्थल में श्रीवत्सचिह्न शोभा पाता था। उनके नेत्र प्रफुल्‍ल कमल के समान सुशोभित थे। रोमावलियाँ ऊपर की ओर उठी हुई थीं और त्वचा बहुत ही कोमल थी। उनकी सभी अंगलियाँ समान रूप से सुन्दर और सुडौल थीं। नख भी बराबर थे, अंगुलियों और नखों के भीतर का भाग लाल था। उनकी वाणी का घोष स्निग्ध एवं गम्भीर था। भुजाएँ गोलाकार एवं विशाल थीं। उनकी भुजाएँ घुटनों तक लम्बी थीं। मुख का रंग लाल था। उनका चलना-फिरना और पराक्रम सुस्पष्टत: सिंह के समान था। वे सहस्रों सूर्यों के समान देदीप्यमान होकर प्रकाशित होते थे। जो सर्वव्यापी भूतभावन प्रभु सम्पूर्ण विश्व के आत्मा रूप से प्रकाशित होते हैं- जिन्हें वामनावतार के समय प्रजापति कश्यप ने प्रसन्न होकर अणिमा आदि आठ गुणों से युक्त ऐश्वर्य प्रदान किया है। जो प्रजापतियों, साध्यों और देवताओं में सनातन पुरुष माने जाते हैं, उन महाबली एवं प्रतापी वासुदेव भगवान श्रीकृष्‍ण ने द्वारका में यात्रा की तैयारी के लिये आज्ञा देकर शोणितपुर को जाने का विचार किया। उस समय सूत, मागध, बन्दीजन तथा वेद-वेदांगों के पारंगत विद्वान महाभाग महर्षिगण दिव्य स्तोत्रों द्वारा उनकी स्तुति कर रहे थे।

पहले भगवान श्रीकृष्ण गरुड़ पर आरूढ़ हुए थे। उनके पीछे हलधर बलराम जी और बलराम जी के भी पीछे शत्रुसूदन प्रद्युम्न गरुड़ पर बैठे थे। (भगवान की यात्रा के समय अन्तरिक्ष में यह वाणी सुनायी दी) ‘महाबाहो! आप बाणासुर को तथा उसके जो अनुयायी हों, उनको भी रणभूमि में पराजित कीजिये। महासमर में काई भी आपके सामने ठहर नहीं सकता। आपके प्रसाद में लक्ष्मी का अटल निवास है और पराक्रम में विजय प्रतिष्ठित है। आप रणभूमि में अपने शत्रु दैत्यराज बाण को उसके सैनिकों सहित परास्त कर देंगे’। इस प्रकार अन्तरिक्ष में सिद्धों और चारणों के समुदायों तथा सम्पूर्ण महर्षियों की कही हुई बातें सुनते हुए भगवान केशव युद्ध के लिये प्रस्थित हुए।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में श्रीकृष्ण का प्रस्थान विषयक एक सौ इक्कीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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