हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 73 श्लोक 70-87

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: त्रिसप्ततितम अध्याय: श्लोक 70-87 का हिन्दी अनुवाद

तब सात्यकि ने हंसते हुए से ढाल और तलवार हाथ में ले ली। वे गदा से अधिक आहत हो चुके थे; अतः उन बुद्धिमान वीर ने धनुष नहीं उठाया। इसके बाद यदुनन्दन सात्यकि को निहत्था-सा जानकर प्रवर ने उन पर सैकड़ों बाण छोडे़। उस समय प्रद्युम्न ने उन्हे निर्मल आकाश के समान एक खड्ग दिया, परन्तु प्रवर ने तत्काल एक भल्ल मार उसके खड्ग को मूठ पकड़ने की जगह से काटकर गिरा दिया और सीधे जाने वाले पैने बाणाें से उनकी ढाल की भी धज्जियां उड़ा दीं। फिर उस ब्राह्मण शक्ति के द्वारा उनकी छाती पर आघात किया। इसके बाद वह सिंह के समान गर्जना करने लगा। उन्‍हें व्याकुल-सा जानकर प्रवर पारिजात हड़प लेने की इच्छा से रथ के द्वारा ही गरुड़ के निकट आकर खड़ा हो गया।

उस समय गरुड़ ने अपने पंखों के वेग से प्रवर को दो कोस दूर फेंक दिया। प्रवर रथ सहित वहाँ गिरा ओर मूर्च्छित हो गया। नरेश्वर! जब जयन्त दौड़कर वहाँ जा पहुँचा और गिरे हुए ब्राह्मण को सान्त्वना देकर उसे शीघ्र ही रथ पर चढ़ा दिया। सात्यकि भी बारम्बार मूर्च्छित हो होकर गिरने लगे। उस समय प्रद्युम्न ने चाचा सात्यकि को आश्वासन देते हुए उन्हें हृदय से लगा लिया। उस समय मधुसूदन श्रीकृष्ण बायें हाथ से उनका स्पर्श किया। उनके स्पर्श मात्र से सात्यकि की सारी पीड़ा दूर हो गयी। तदनन्तर पारिजात दाहिने भाग में प्रद्युम्न और बायें पार्श्‍व में सात्यकि खडे़ हो गये। ये दोनों ही युद्ध में अत्यन्त कुशल थे। भरतनन्दन! इतने में ही जयन्त और प्रवर भी एक ही रथ से दौड़ते हुए वहाँ आ पहुँचे। उस समय महात्मा महेन्द्र ने उन दोनों से हँसकर कहा- 'तुम दोनों किसी तरह गरुड़ के निकट ना जाना यह पक्षियों का राजा विनतानन्दन गरुड़ बड़ा बलवान है।

तुम दोनों मेरे दायें और बायें भाग में धनुष धारण करके खडे़ हो जाओ और युद्ध करते समय मेरी ही देखभाल करो।' इन्द्र के ऐसा कहने पर वे दोनों वीर उनके दोनों बगल में खडे़ हो गये और देवराज इन्द्र तथा श्रीकृष्ण युद्ध देखने लगे। तदनन्तर इन्द्र महान वज्र के समान शब्द करने वाले बाणों तथा बड़े-बडे़ अस्त्रों द्वारा गरुड़ के सारे अंगों में चोट पहुँचाने लगे। तब उनके उन बाणों को कुछ भी न गिनते हुए शत्रुओं का दमन करने वाले प्रतापी वीर विनतानन्दन गरुड़ इन्द्र के हाथी ऐरावत की और बढ़े। राजन! वे बलवान हाथी और पक्षी सहसा एक दूसरे के साथ जूझने लगे। वे दोनों ही बल पराक्रम से सम्पन्न महान प्राणशक्ति से युक्त और दुर्जय थे। उस समय गर्जते हुए गजराज ऐरावत ने अपनी सूँड़, मस्तक और दांतों से सर्प शत्रु गरुड़ पर गहरा आघात किया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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