हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकोनविंश अध्याय: श्लोक 39-59 का हिन्दी अनुवादहाथी के समान पराक्रमी श्रीकृष्ण! इस प्रकार आप अपने सौम्य तेज से मन में क्षमाभाव लाकर ब्रह्मा जी तथा गौओं के कहे हुए इस वचन को मेरे मुख से सुनिये- भगवान ब्रह्मा तथा द्यूलोक में स्थित हुई आकाशगामिनी गौओं ने आपको यह संदेश दिया है कि ‘हम आपके गोसंरक्षण आदि दिव्यकर्मों से बहुत संतुष्ट हैं। आपने जो गौओं की रक्षा की है, उससे इस महान गोलोक का संरक्षण हुआ है; क्योंकि अब हम अपने सांड़ों और संतानों के साथ दिनों दिन बढ़ रही हैं। हम गौएं सम्पूर्ण कामनाओं को देने वाली हैं। अब हल या गाड़ी में जोतने योग्य बैल देकर हम किसानों को संतुष्ट करेंगी। दूध-घी के द्वारा पवित्र हविष्य प्रस्तुत करके देवताओं की तृप्ति करेंगी और गोबर देकर साक्षात श्रीदेवी को संतुष्ट करती रहेंगी। प्रभो! आप महान बलशाली प्रभु हमारा परित्राण करने के कारण हमारे गुरुरूप हैं, अत: आज से आप हम गौओं के राजा इन्द्र हो जायँ’। अत: (गौओं के इस अनुरोध के अनुसार) मेरे द्वारा हाथ पर रखकर प्रस्तुत किये गये इन दिव्य जल से भरे हुए सोने के कलशों द्वारा आप अपना अभिषेक करें। मैं देवताओं का इन्द्र हूँ और आप गौओं के इन्द्र हो गये! आज से इस भूतल पर सब लोग आप सनातन प्रभु को ‘गोविन्द’ कहकर आपका स्तवन करेंगे। श्रीकृष्ण! गौओं ने आप परमेश्वर को जो मेरे ऊपर इन्द्र बनाकर प्रतिष्ठित किया है, उसके अनुसार देवता लोग आपको ‘उपेन्द्र’ नाम देकर द्युलोक में आपकी कीर्ति का गान करेंगे। मेरी आराधना के लिये जो ये वर्षा के चार महीने विहित हुए हैं, इनका पिछला आधा भाग, जिसे शरत्काल कहते हैं, मैं आपको दे रहा हूँ। सब मनुष्य आज से ‘श्रवण और भाद्रपद’ इन दो ही महीनों को मेरे लिये नियत मानेंगे। इनके साथ वर्षा का आधा भाग व्यतीत हो जाने पर इन्द्रव्रत की समाप्ति के चिह्नभूत मेरे ध्वज की स्थापना होगी। उसके बाद आपकी पूजा होने लगेगी। उस समय मोर मेरे द्वारा बरसाये गये जल से उत्पन्न हुए मद को त्याग देंगे। उनकी बोली कम हो जायगी और उनका सारा मद उतर जायगा। मेघों को देखकर गर्जना करने वाले जो दूसरे प्राणी हैं, वे सब भी मेरे समय का विचार करके शान्ति (मौन) धारण कर लेंगे वर्षा में ही सहस्स किरणों वाले सूर्यदेव अपने तेज से जगत को ताप देते हुए ‘त्रिशंक’ और 'अगस्त्यमुनि’ के द्वारा उपभोग में लायी हुई दक्षिण दिशा में संचार करेंगे। तदनन्तर जब शरद्-ऋतु का योग प्राप्त होगा, मोर मौन रहने की इच्छा करेंगे, पपीहे जल की याचना करने लगेंगे, नदियों में नाव चलना बंद हो जायगा (अर्थात नदियों में जल की बाढ़ नहीं रह जायगी), सरिताओं के तट हंसों और सारसों से भरे रहेंगे, मदमत्त क्रौंच पक्षी वहाँ कलरव करते होंगे, सांड़ मत वाले होकर घूमेंगे, गौएं हर्ष में भरकर बहुत दूध देंगी, संसार के लिये जल की वर्षा करके बादल विलीन हो जायेंगे। आकाश शस्त्रों की भाँति चमक उठेगा- निर्मल हो जायगा, हंस सब ओर विचरने लगेंगे, बावड़ी और सरोवरों के जलों में कमल उत्पन्न हो जायँगे, (उनके खिलने से) तड़ागों की शोभा बढ़ जायेगी- वे कमनीय हो उठेंगे, सभी जलाशयों के जल निर्मल हो जायँगे, खेतों की श्रेणीबद्ध काली-काली क्यारियों में धानों की पकी बालें अग्रभाग की ओर से लटकती होंगी, नदियां अपने जल का बहाव बीच में कर लेंगी, व्रजों अथवा गांवों की सीमाएं (खेतों की भूमि) सुन्दर सस्यों (अनाजों)- से सम्पन्न हो मुनियों के भी मन को मोह लेने वाली हो जायँगी, वर्षा बीत जाने पर जब बहुसंख्यक राष्ट्रों से युक्त पृथ्वी रमणीय दिखायी देने लगेगी, पंक्ति बद्ध मार्ग शोभायमान हो जायेंगे, तृण-बेलों तथा औषधियों में फल लग जायेंगे, स्थान-स्थान पर ईंख की खेती लहराती दिखायी देगी, (आग्रायण और वाजपेय आदि) यज्ञ आरम्भ होने लगेंगे तथा आप (भगवान विष्णु) जब सोकर जाग उठेंगे, उस समय पुण्यमयी शरद्-ऋतु की प्रवृत्ति होगी। श्रीकृष्ण वह शरत्काल प्राप्त होने पर स्वर्गलोक की ही भाँति इस समस्त जगत में रहने वाले मनुष्य भी भूतल पर ध्वजा कार डंडों में मुझ महेन्द्र की तथा आप उपेन्द्र की पूजा करेंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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