हौ हरि यहै सिखाव सिखाऊँ -सूरदास

सूरसागर

2.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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हौ हरि यहै सिखाव सिखाऊँ।
जौ तुम नंदनँदन दधि चाहौ तौ मैं तुम्है खवाऊँ।।
हाँ जु दूध बाखरी धेनु कौ तुम हित औटि जमाऊँ।
बछरुनि कै सँग टेरत डोलत तहाँ तुम्है कहँ पाऊँ।।
जा भाजन दधि औटि जमाऊँ सो दधि तुम्है बताऊँ।
मेरी परोसिनि आप काज कौ जब उठि जाइ बहाऊँ।।
छीके पर है कनक कमोरी जौ हौ नैन नचाऊँ।
मेरे नैन दरस के प्यासे बहुरौ दरसन पाऊँ।।
'सूरदास' प्रभु छल करि आवहु इहिं मिस देखि अघाऊँ।। 32 ।।

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