हिंडोरा माई झूलत हैं गोपाल -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग राज्ञी रामगिरी


हिंडोरा (माई) झूलत है गोपाल।
संग राधा परम सुंदरि चहूँधा ब्रज बाल।।
सुभग-जमुना-पुलिन मोहन, रच्यौ रुचिर हिंडोर।
लाल डांड़ी फटिक पटुली, मनिनि मरुव धौर।।
भँवरा मयारिहिं नीलमनि, खंचे पाँति अपार।
सरल कंचनखंभ सुंदर, रच्यौ काम सुतार।।
भाँति-भाँतिनि पहिरि सारी, तरुनि नव सत अंग।
सुंदरी वृषभानुतनया, नैन चपल कुरंग।।
हँसति पिय सँग लेति झूमक, लसति स्यामल गात।
मनौ घन मै दामिनी छवि, अंग मैं लपटात।।
कबहुँ पुलकति, कबहुँ डरपति, कबहुँ निरखति नारि।
कबहुँ देति झुलाइ गोपी, गावही बनवारि।।
'सूर' प्रभु के संग कौ सुख, बरनि कापै जाइ।
अमर बरषत सुमन अंबर, बिबिध अस्तुति गाइ।।2835।।

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