जमुनापुलिन रच्यौ हिंडोर।
घोषललना संग तरुनी, तरुन नंदकिसोर।।
एक सँग लै मचति मोहन, एक देति झुलाइ।
एक निरखति अंग माधुरि, इक उठति कछु गाइ।।
स्यामसुंदर गोपिकागन, रही घेरि बनाइ।
मनु जलद कौ दामिनीगन, चहत लेन लुकाइ।।
नारि सँग बनवारि गावत, कोकिला छवि थोर।
डुलत झूलत मुकुट सिर पर, मनौ नृत्यत मोर।।
सुभग मुख दुहुँ पास कुंडल, निरखि जुवती भोर।
चक्रबाक चकोर लोचन, करि रही हरिओर।।
थकित सुर ललनासहित नभ, निरखि स्यामबिहार।
हरषि सुमन अपार बरषत, मुखहिं जैजैकार।।
करत मन मन यहै वाछा, भए न बन द्रुम डार।
देह धरि प्रभु 'सूर' बिलसत, ब्रह्म-पूरनसार।।2836।।