हा हा कहि चंद्रावलि मोसौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


हा हा कहि चंद्रावलि मोसौ, हरि के गुन मैं हूँ सुनि लेहूँ।
स्रवननि मग सुनि हृदय प्रकासो, पुनि पुनि री तोहि उत्तर देउँ।।
की तोहि मिले तीर जमुना, कै की तोहि मिले भवनही माँझ।
कहौ तोहि मेरै गृह आए, मानौ अस्त होत रवि साँझ।।
काहु बाम कै धाम बसे निसि, भोर सदन गए मेरै आइ।
'सूर' स्याम जो चरित उपायौ, कहन चहौ मुख कह्यौ न जाइ।।2530।।

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