हरि सब भाजन फोरि पराने।
हाँँक देत पैठे दै पेला नैंकु न मनहिं डराने।8
सींके छोरि, मारि लरिकनि कौं, माखन-दधि सब खाइ।
भवन मच्यौ दधिकांदौ, लरिकनि रोवत पाए जाइ।
सुनहु-सुनहु सबहिनि के लरिका, तेरौ सौ कहुँ नाहिं।
हाटनि-बाटनि, गालिनि कहूँ कोउ, चलत नहीं डरपाहि।
रितु आए कौ खेल, कन्हैया सब दिन खेलत फाग।
रोकि रहत गहि गली साँकरो, टेढ़ो बाँधत पाग।
बारे तै सुत ये ढँग लाए, मनहीं मनहिं सिहाति।
सुनैं सूर ग्वालिनि की बातैं, सकुचि महरि पछिताति।।328।।