कन्‍हैया तू नहि मोहि डरात -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सारंग



कन्‍हैया तू नहि मोहि डरात।
षटरस धरे छाँड़ि कत पर घर, चोरी करि करि खात।
बकत-बकत तोसौं पचिहारी, नेंकहुँ लाज न आई।
ब्रज-परगन-सिकदार महर, तू, ताको करत नन्‍हाई।
पूत सपूत भयो कुल मेरैं, अब मैं जानो बात।
सूर स्‍याम अब लौं तुहि बकस्‍यो, तेरो जानो घात।।329।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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