हरि बिनु मीत नहीं कीउ तेरे -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री




हरि बिनु मीत नहीं कीउ तेरे।
सुनि मन, कहौं पुकारि तोसौं हौं, भजि गोपालहिं मेरे।
या संसार विषय-विष-सागर, रहत सदा सब घेरे।
सूर स्‍याम बिनु अंतकाल मैं कोउ न आवत नेरे।।85।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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