जा दिन मन पंछी उड़ि जैहै -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग झिझौटी




जा दिन मन पंछी उड़ि जैहै।
ता दिन तेरे तन-तरुवर के सबै पात झरि जैहैं।
या देही कौ गरब न करियै, स्‍यार-काग-गिघ खैहैं।
तीननि मैं तन कृभि, कै बिष्‍टा, कै ह्वै खाक उड़ैहै।
कहँ वह नीर, कहाँ वह सोभा, कहँ रँग-रूप दिखैहै।
जिन लोगनि सौं नेह करत है, तेई देखि घिनैहैं।
घर के कहत सवारे काढ़ौ, भूत होइ धरि खै‍हैं।
जिन पुत्रनिहिं बहुत प्रतिपाल्‍यौ, देवी-देव मनैहैं।
तेई लै खोपरी बाँस दै सीस फोरि बिखरैहैं।
अजहूँ मूढ़ करौ सतसंगति, संतनि मैं कछु पैहै।
नर-बपु धारि नाहिं जन हरि कों, जम की मार सो खैहै।
सूरदास भगवंत-भजन बिनु बृथा सु जनम गँवैहै।।86।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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