स्वामी पहिलौ प्रेम सँभारौ।
ऊधौ जाइ चरन गहि कहियै, जी तै हित न उतारौ।।
जो तुम मधुवन राज काज भए, गोकुल हम न अधारौ।
कमलनयन सो चैन न देखौ, नित उठि गोधन चारौ।।
ये व्रजलोग मया के सेवक, तिनसौ क्यौ न बिहारौ।
‘सूरदास’ प्रभु एक बार मिलि, सकल विरह दुख टारौ।।4057।।