स्याम सखा जेवत ही छाड़े -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली


स्याम सखा जेवत ही छाड़े।
कर कौ कौन डारि पनवारै, आपु चले अति चाँड़े।।
चकित भई देखत जननी दोउ, चकित भए सब ग्वाल।
अति-आतुर तुम चले कहाँ हौ, हमहि कहौ गोपाल।।
अबही एक सखा यह कहि गयौ, गाइ रही बन ब्याइ।
सुनहु 'सूर' मैं जेवन बैठ्यौ, वह सुधि गई भुलाइ।।1982।।

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