नंद-महर-घर के पिछवारै, राधा आइ बतानी।
मनौ अब-दल-मौर देखि के, कुहुकी कोकिल बानी।।
झूठेहिं नाम लेति ललिता कौ, काहै जाहु परानी।
वृंदावन मग जाति अकेली, सिर लै दही मथानी।।
मै बैठी परखति ह्वाँ रैहौ, स्याम तबहिं तिहि जानी।
कोक-कला-गुन-आगरि नागरि, 'सूर' चतुरई ठानी।।1981।।