स्याम सकुच प्यारी उर जानी।
लई उछंग बाम भुज भरि कै, बार बार कहि बानी।।
निरखति सकुनि बदन हरि प्यारी, प्रेम सहित जुहरानी।
करत कहा पिय अति उताइली, मै कहूँ जाति परानी।।
कुटिल कटाच्छ बंक करि भ्रकुटी, आन्न सुरि मुसुकानी।
'सूर' स्याम गिरिधर रतिनागर, नागरि राधा रानी।।2031।।