कहा कहौ सुख कह्यौ न जाइ।
वह अभिलाख स्याम की आवनि, ढोउनि उर आनँद न समाइ।।
द्वादस कान्ह, द्वादसी आपुन, यह निसि, वह हरिराधा जोग।
वह रस की झझकनि, यह महिमा, वह मुसुकनि, वैसो संजोग।।
बै हित बोल परस्पर दोऊ, ठठकनि कहत प्रेम सकुचानि।
'सूर' स्याम कर बाम भुजा धरि, उछँग लई यह पहिचानी।।2030।।