स्याम सँग खेलन चली स्यामा -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग श्रीहठी


स्याम सँग खेलन चली स्यामा, सब सखियनि कौ जोरि।
चंदन अगर कुमकुमा केसरि, बहु कंचन घट घोरि।।
खेलत मोहन रंग भरे हो, संग बाल ब्रजबासि।
लाल पियारौ रूप उजारौ, सुंदर सब सुख रासि।।
फूलनि के कंदुक नौलासी, कनक लकुटिया हाथ।
जाइ गही ब्रजखोरि राधिका, कोटिक जुवती साथ।।
उत तै हरि आए जब खेलत, हो हो होरी संग।
कान परी सुनियै नाही बहु, बाजत ताल मृदंग।।
पहिलै सुधि पाई नाही तब, घिरे साँकरी खोरि।
अब हलधर उलटहु काहे तुम, धावहु ग्वालनि जोरि।।
धरत भरत भाजत राजत, गेदुक नौलासी मार।
रसन बसन छूटत न सँभारत, टूटत है उर हार।।
जब मोहन न्यारे करि पाए, पकर चहुँ दिसि घेरि।
बोलहु जू अब आनि छुड़ावै, बल भैया कौ टेरि।।
आजु हमारै बस्य परे हौ, जैहौ कहाँ छंड़ाइ।
की बल छूटहु अपनै, की अब, जसुमति माइ बुलाइ।।
एक गहे कर, एक फैट पीतांबर लियौ, छंड़ाइ।
राधा हँसति दूर भई ठाढ़ी, सखियनि देति सिखाइ।।

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