स्याम मनाई मानिनी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


स्याम मनाई मानिनी, हरषित भई अंग।
रैनि बिरह तनु कौ गयौ, जे करे अनंग।।
सुता महर वृषभानु की, सुधि कीन्ही स्याम।
ताकौ सुख दै हरि चले, प्यारी कै धाम।।
प्यारी आवत पिय लखे, चितई मुसुकाइ।
जिय डरपे मोहिं देखि कै, सुख कह्यौ न जाइ।।
अब न पियहिं उचटाइहौ, मोकौ सरमात।
त्रास करत मेरी जिती, आवत सकुचात।।
आनि द्वार ठाढ़े भए, नायकबहु नाम।
'सूरज' प्रभु अँग सहजही, निरखति रुचि बाम।।2723।।

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