मुख निरखत तिय चकित भई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग टोड़ी


मुख निरखत तिय चकित भई।
जो देखै अति तरुन कन्हाई, यह को लखै दई।।
छाँड़ि देहु ऐसे मनमोहन, हँसि मन लजित भई।
ऐसे छंद रचत पिय धनि धनि, कीन्ही करनि नई।।
अंकम भरि तिय कंठ लगाई, कुच उर चाँपि लई।
'सूर' स्याम मानिनि मनमोहन, रतिरस सौ भिगई।।2722।।

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