स्याम भए वृषभानु-सुता-वस, और नही कछु भावै (हो)।
जो प्रभु तिहूँ भुवन कौ नायक, सुर मुनि अंत न पावै (हो)।।
जाकौ सिव ध्यावत निसिवासर, सहसानन जिहि गावै (हो)।
सो हरि राधा-बदन-चंद कौ, नैनचकोर त्रसावै (हो)।।
जाकौ देखि अनग अनगत, नागरि छवि भरमावै (हो)।
'सूर' स्याम स्यामाबस ऐसै, ज्यौ संग छाँह डुलावै (हो)।।2020।।