कबहुँ स्याम जमुना तट जात।
कबहुँ कदम चढ़त मग देखत, राधा बिनु अतिही अकुलात।।
कबहुँ जात बन कुंजधाम कौं, देखि रहत नहि कछू सुहात।
तब आवत वृषभानुपुरा कौ, अति अनुराग भरे नँदतात।।
प्यारी हृदय प्रगटही जानति, तब वह मनहीं माँझ सिहात।
'सूरदास' नागरि के डर मैं, निबसे नागर स्यामल गात।।2021।।