स्याम बिनु भई सरद निसि भारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग मलार


स्याम बिनु भई सरद निसि भारी।
हमैं छाँड़ि प्रभु गए द्वारिका, ब्रज की भूमि बिसारी।।
निरमल जल जमुना कौ छाँड्यौ, सेव समुद्र जल खारी।
कहियौ जाइ पथिक जैसै आवै, चरननि की बलिहारी।।
अबला कहा जोग की जानै, ब्रजबासिनी जु बिचारी।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे दरस कौ, रटति राधिका प्यारी।। 4266।।

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