ब्रज पर मँडर करत है काम।
कहियौ पथिक स्याम सौ राखै, आइ आपनौ धाम।।
जलद कमान बारि दारू भरि, तड़ित पलीता देत।
गरजन अरु तड़पन मनु गोला, पहरक मैं गढ लेत।।
लेहु लेहु सब करत बदि, जन कोकिल चातक मोर।
दादुर निकर करत जो टोवा, पल पल पै चहुँ ओर।।
ऊधौ मधुप जसूस देखि गयौ, टूटयौ धीरज पानि।
राखिबै होइ तौ आनि राखियै, ‘सूर’ लोक निज जानि।। 4267।।