स्याम नारि कै बिरह भरे।
कबहुँक बैठत कुंज द्रुमनि तर, कबहुँक रहत खरे।।
कबहुँक तनु की सुरति बिसारत, कबहुँक तनु सुधि आवत।
तब नागरि के गुनहिं बिचारत, तेई गुन गनि गावत।।
कहूँ मुकुट, कहुँ मुरलि रही गिरि, कहुँ कटि पीत पिछौरी।
'सूर' स्याम ऐसो गति भीतर, आई दूतिका दौरी।।2439।।