स्याम कौंन कारे की गोरें।
कहाँ रहत काके पै ढोटा, वृद्ध, तरुन की धौं हैं, भोरे।।
इहँई रहत कि और गाउँ कहुँ, मैं देखे नाहिंन कहुँ उनकौं।
कहै नहीं समुझाइ बात यह, मोहिं लगावति हौ तुम जिनकौं।।
कहाँ रहौं मैं, वै धौं कहँके, तुम मिलवति हौ काहैं ऐसी।
सुनहु सूर मोसी भोरी कौं, जारि जारि लावति हौ कैसी।।1699।।