कहा कहति तू भई बावरी।
तू हँसि कहति सुनै, कोउ ओरै, कह कीन्हौ चाहति उपाव री।।
सो तौ साँच मानि यह लैहै, हमहिं तुमहिं बातैं सुभाव री।
मेरी प्रकृति भलैं करि जानति, मैं तोसौं करिहौं दुराव री?।।
ऐसी कैसैं होइ सखी री, घर पुनि मेरो है बचाव री?।
सूर कहति राधा सखि आगैं, चकित भई सुनि कथा रावरी।।1698।।