स्याम करत है मन की चोरी।
कैसै मिलत आनि पहिलै ही, कहि कहि बतियाँ भोरी।।
लोकलाज को कानि गँवाई, फिरति गुडी बस डोरी।
ऐसे ढग स्याम अब सीख्यौ, चोर भयौ चित कौ री।।
माखन की चोरी सहि लीन्ही, बात रही वह थोरी।
'सूर' स्याम भयौ निडर तबहिं तै, गोरस लेत अँजोरी।।1894।।