स्यामा बदन देखि हरि लाज्यौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ


स्यामा-बदन देखि हरि लाज्यौ।।
अहै अपूर्ब जानि जिय लघुता, खीन इंदु याही दुख भज्यौ।।
क्रीड़त कुंज-अटा रजनी-मुख, प्रेम-मुदित नवसत अंग साज्यौ।
बिधु लच्छन जानत सुर नर सब, मृगमद-तिलक देखि सो लाज्यौ।।
बिथकित रथ चक्रित अवलोकन, सुंदरि-सँग हरि-राज बिराज्यौ।
बिस्मय मिटी ससि पेखि समीपहि, कहि अब सूर उभय हरि गाज्यौ।।1193।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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