स्यामहिं देखि महरि मुसक्यानी।
पीतांबर काकैं घर बिसरयौ, लाल ढिगनि की सारी आनी।।
ओढ़नि आनि दिखाई मोकौं तरुनिनि की सिखई बुधि ठानी।
घर लै-लै मेरौ सुत भुरवतिं, ये ऐसी सब दिन की जानी।।
हरि अंतरजामी रति-नागर, जानि लई जननी पहिचानी।
सूर निरखि मुख सकुचि भगाने, या लीला की यहै सयानी।।695।।