मैया री मैं जानत वाकौं।
पीत उढ़नियाँ जो मेरी लै गई, आनौ धरि ताकौं।।
हरि की माया कोउ न जानै, आँखि घूरि सी दीन्ही।
लाल ढिगनि की सारी ताकौं, पीत उढ़नियाँ कीन्ही।।
पीतांबर लै जननि दिखायौ, लै आन्यौ तिहीं पास।
सूर मनहिं मन कहति जसोदा, तरुनि पढ़ावति गाँस।।694।।