सौह करन कौ भोरही, तुम मेरै आए।
रैनि करत सुख अनतही, ताकै मन भाए।।
अँग अँग भूषन और से, माँगे कहुँ पाए।
देखि थकित इहिं रूप कौ, लोचन अरुनाए।।
पाग लटपटी सोहई, जावक रँग लाए।
मान कियौ उहिं मानिनी, धनि पाइ पराए।।
यह चतुराई कहँ पढी, उनही समुझाए।
'सूरदास' प्रभु साँचिलै, उपमा कबि गाए।।2522।।