आजु हरि आलस रंग भरे।
कबहुँक बाहँ जोरि ऐंड़ावत, कबहुँ जम्हात खरे।।
बैठोगे की पाउ धारियै, देखत नैन सिराने।
साँझ आइ इक दरसन दीन्हौ, की अब होत बिहाने।।
कब कै द्वार भए पिय ठाढ़े, भोरे बड़े कन्हाई।
'सूर' स्याम ह्याँ सुरति करति वह, ह्याँ तुम झेर लगाई।।2521।।