सैंतति महरि खिलौना हरि के।
जानति टेव आपने सुत की, रोवत है पुनि लरिकै।।
धरि चौगान, बेत, मुरलो धरि, अरु भौंरा चक डोरी।
प्रेम सहित लै-लै धरि राखति, यह सब मेरे कोरी।।
स्रवननि सुनत अधिक रुचि लागति, हरि की बतियाँ मोरी।
सूर-स्याम सौं कहति जसोदा, दूध पियहु बलि तोरी।।712।।