सूरसागर प्रथम स्कन्ध पृ. 92

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सूरसागर प्रथम स्कन्ध-92

विनय राग


185.राग सोरठ
प्रभु जू, यौं कीन्‍हीं हम खेती !
बंजर भूमि, गाऊँ हर जोते् अरू जेती की तेती।
काम-क्रोध दोउ बैल मिलि, रज-तामस सब कीन्‍हौ।
अति कुबुद्धि मन हाँकनहारे, माया जुआ दीन्‍हौं।
इंद्रिय-मूल-किमान महातृन-अग्रज-बीज बई।
जन्‍म जनम की विषय-वासना, उपजत लता नई।
पंच-प्रजा अति प्रबल बली मिलि, मन-बिधान जौ कीनौ।
अधिकारी जम लेखा माँगै, तातैं हों आधीनौ।
घर मैं गथ नहिं भजन तिहारौ, जौन ठाकुर लूटौ।
अहंकार पटवारी कपटी, झठी लिखत वही।
लागै धरम, बतावै अधरम, बाकी सबै रहो।
सोई करौ जु बसतै रहियै, अपनौ धरियै नाउँ।
अपने नाम की बैरख बाँधौ, सुबस बसौं इहिं गाउँ।
कीजै कृपा-दृष्टि की वरषा, जन की जाति लुनाई।
सूरदास के प्रभु सो करियै, होइ न कान कटाई।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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